शनिवार, 13 नवंबर 2010

चमेली



मेरे किस्सों में इन दिनों औरतें हावी हैं, और उस पर से चमेली छा गयी ज़हन पे ! कुछ घंटे ही हुए हैं, चमेली देखी. उस फिल्म में हैं - रंग . . खासकर लाल और नीला, बारिश और सच जो इंसान से निगला नहीं जाता. एक रात में सिमटा ये किस्सा, नस में उतरते जाता है . . . और जब देख के उठते हैं, आप चमेली की महक से बच नहीं पाते.एक औरत जो धंधा करती है, करती है गर्व से करती है . . क्यूंकि अब खाई के बाहर कोई रास्ता नहीं.
ख़ुशी और गम को फूंकती एक सिगरेट की मानिंद, कुछ धुंआ निगलती हुई कुछ उगल देने वाली.

जुबां है करकट,
दिल में झटपट
इस पाखी के
गीत और अरमान
जाने ना कोई
जाने ना कोई !

1 टिप्पणी:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ख़ुशी और गम को फूंकती एक सिगरेट की मानिंद , कुछ धुंआ निगलती हुई कुछ फूंक देने वाली
बहुत उम्दा ...... दीपशिखा कमाल की सोच है..... शुभकामनायें