शनिवार, 28 अगस्त 2010

जनम



जनम किसी का भी हो , चाहे एक सुकडी नाक की बेटी हो, या एक फटे मूंह वाले लल्ले का .. माँ तो खुश होती ही है.
आज तुम्हारा जन्म हुआ है और मैं . . हाँ मैं खुश हूँ !
सालो युगों की परत में दब चुकी कितनी कहानियाँ हैं मेरे पास, दिल में ही कहीं लोटती हुईं पर किसी पन्ने या डायरी से सकुंचाती. चलो बदलते वक़्त ने इसे बड़ा सरल बना दिया, जब भी अन्दर से कोई आवाज़ आये लिख डालो बस .. खोलो बंद सी पड़ी इस बटन वाली किताब को और शुरू हो जाओ .. मुझे कभी अंदाजा नहीं था की मैं अपनी उंगलियों से इतना प्यार करुँगी, कभी मैं इतना लिखूंगी बेखटके.
बस अब की एक बार, ठेला खरीद लिया है कल से कारोबार भी चल पड़ेगा :) रियाज़ के तौर पर ..लेलो हरी ताज़ी रसीली कहानियाँ ले लो ! आज देखो तरकारी क्या छुरी से बना के चलेगी ..आप कटेगी मेमसाब आप ! बस हाथ में पकड़ के तो देखिये ..कितनी ताज़ी, कितनी असली, बिलकुल देसी..
लगता है ज्यादा वादे - उम्मीदें बेच दीये ..माफ़ करना !