शनिवार, 28 अगस्त 2010

जनम



जनम किसी का भी हो , चाहे एक सुकडी नाक की बेटी हो, या एक फटे मूंह वाले लल्ले का .. माँ तो खुश होती ही है.
आज तुम्हारा जन्म हुआ है और मैं . . हाँ मैं खुश हूँ !
सालो युगों की परत में दब चुकी कितनी कहानियाँ हैं मेरे पास, दिल में ही कहीं लोटती हुईं पर किसी पन्ने या डायरी से सकुंचाती. चलो बदलते वक़्त ने इसे बड़ा सरल बना दिया, जब भी अन्दर से कोई आवाज़ आये लिख डालो बस .. खोलो बंद सी पड़ी इस बटन वाली किताब को और शुरू हो जाओ .. मुझे कभी अंदाजा नहीं था की मैं अपनी उंगलियों से इतना प्यार करुँगी, कभी मैं इतना लिखूंगी बेखटके.
बस अब की एक बार, ठेला खरीद लिया है कल से कारोबार भी चल पड़ेगा :) रियाज़ के तौर पर ..लेलो हरी ताज़ी रसीली कहानियाँ ले लो ! आज देखो तरकारी क्या छुरी से बना के चलेगी ..आप कटेगी मेमसाब आप ! बस हाथ में पकड़ के तो देखिये ..कितनी ताज़ी, कितनी असली, बिलकुल देसी..
लगता है ज्यादा वादे - उम्मीदें बेच दीये ..माफ़ करना !

5 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

मुबारक हो जन्म!

विधुल्लता ने कहा…

मुझे ख़ुशी है ....ब्लॉग की इस दुनिया में ...कुछ दिल में उतर जाने वाला पढने को मिलेगा ..बेहद सटीक लिखा है तुमने/आपने ...बधाई

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA ने कहा…

सोचा था इस नाज़ुक सी जान को आप जैसे दिगज्जों की नज़रों से बचा कर रखूंगी , मेरे बच्चे के लक्षण क्या पता आपको भायें या न भायें ! आखिर पकड़ ही लीं आपने मेरे बच्चें की नन्ही नन्ही कलाइयां और पूछ ही लिए दो तीन छुट पुट सवाल :)

Kiran Wadivkar ने कहा…

बहुत ही अच्छा लगा .आप तो महान हैं . मैं मेरी ख़ुशी शब्दोमे जाहिर नहीं कर पा रहा हूँ.
आपके इस नवजात शिशु को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं !.

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA ने कहा…

शुक्रिया किरण जी :-) आपके दो एक लफ्ज़ मेरी भी ख़ुशी दुगनी कर देते हैं .
आप नहीं जानते आपके एक कमेन्ट को मैं कितनी बार पढ़ती हूँ ..वो औरत अभी भी सीड़ी पे ही बैठी हुई है , ज़रा भी चड़ी या उतरी नहीं !