शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

चर्चा के दौरान .

कई दफ़ा चर्चा के दौरान . . मुद्दों की गर्माहट के चलते .. मेरे नाख़ून बढ़ने लगते हैं, दांत नुकीले हो मुंह के बाहर निकल आते हैं. विपक्षी विपक्षी नहीं रहता, वो उस वक़्त एक तलवार बन जाता है, जो आपकी बातों को बेरहमी से व कभी-कभी बेतुके ढंग से काट रहा है, आपको निरंतर मानसिक दुःख दे रहा है. मैदान आप से भी छोड़ा नहीं जाता, न ही उसकी आँखों में ऊब नज़र आती है. चर्चा चलती रहती है, आप जानवर में तब्दील हो जाते हैं. और उस मुंह को कभी माफ़ नहीं कर पाते . . रह रह कर उसकी हरकतों में आप पागलपन ढूँढने लगते हैं.


















पेंटिंग: Steve Hornung