रविवार, 12 जून 2011

चोखेर बाली

१२.०६.२०११

चोखेर बाली देखी,
बड़ी लज़ीज़ होती हैं इस तरह की दर्ज इतिहास में जहाँ औरत मर्दों को ठीक उसी एड़ी के तले रखती हैं जहाँ उसे समाज रखता आया है. यहाँ अफसाना सरकता रहता है और वहाँ सूरज उगता-सा प्रतीत होता है. बात दमन की नहीं है
कि अन्याय के बदले अन्याय दिया जावे, पर कहानियों मे ही सही . . या कहीं गिनी-चुनी जिंदा-मृत मिसालों में सही . . सालों दबे आक्रोश को इन ज़रियों से फूटने का मौका मिलता है. सिकुड़े माथे को कुछ करार मिलता है.

दिन निकलता है,
और एक सुराख के ज़रिये
अंधियारी कुटिया में घर कर लेता है.

आशाओं का परिंदा कभी नहीं
थकता .. वो निरंतर उड़ता रहता है.

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत खूबसूरत ब्लॉग .. आपके दोनों ब्लॉग और आपकी रचनाएं बेहद पसंद आई.. आज आपके ब्लॉग में आने पर बहुत खुशी हुवी..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आशाओं का परिंदा कभी नहीं
थकता .. वो निरंतर उड़ता रहता है.waah

Nelson ने कहा…

Thank you for stopping by! I really do appreciate your taking the time to leave a comment...I read each and everyone of them. I hope your day is a good one and that you will come back again soon. Take care. Nelson Souzza :)