देखो मुलाकातों के ढेर लगे हैं,
पर हम अजनबी हैं आज भी
और शायद आगे भी रहेंगे . . .
जानते-जानते कभी-कभी दोनों को अहसास होता कि लो पूरी हुई गयी तहक़ीक़ात, जान लिया इसे पूरी तरह. पर कभी-कभार एक दुसरे के उन विचित्र पहलुओं को उघाड़ते जिसके लिए शायद सदियाँ बीत जायें पर ये परत दर परत का लिपटाव नहीं.
खैर, उस खोज में रोमांस था. उस अजनबी से अहसास ने उन्हें एक काम दे रखा था. दोनों आँखें गढ़ाए, दिल खोले बैठे रहते . . . हाँ, प्यार है, कब तक . . जब तक हम अजनबी हैं, रोज़ मिलने वाले अजनबी !
पर हम अजनबी हैं आज भी
और शायद आगे भी रहेंगे . . .
प्रिया और अरिहंत कुछ एक साल पहले मिले थे. छोटी सी पहचान थी, नंदिता के ज़रिये जो दोनों की दोस्त थी. दो-तीन मुलाकातों ने तो कोई असर न छोड़ा. मगर फिर कभी-कभी जब नंदिता बीच में दोनों को अकेला छोड़ जाती, तब कोई चारा न पा कर एक-दुसरे मे झांकना पड़ता. और इत्तेफाक़न दोनों बहुत जुदा थे शौक में, तरीकों में .. पर जाने क्यूँ दोनों कुछ न कुछ वजह पकड़ चुके थे अब !
जानते-जानते कभी-कभी दोनों को अहसास होता कि लो पूरी हुई गयी तहक़ीक़ात, जान लिया इसे पूरी तरह. पर कभी-कभार एक दुसरे के उन विचित्र पहलुओं को उघाड़ते जिसके लिए शायद सदियाँ बीत जायें पर ये परत दर परत का लिपटाव नहीं.
खैर, उस खोज में रोमांस था. उस अजनबी से अहसास ने उन्हें एक काम दे रखा था. दोनों आँखें गढ़ाए, दिल खोले बैठे रहते . . . हाँ, प्यार है, कब तक . . जब तक हम अजनबी हैं, रोज़ मिलने वाले अजनबी !
1 टिप्पणी:
विचित्र अनोखे भाव प्रस्तुत किये हैं आपने.
'अजनबी' होनेपन का अहसास कराती हुई.
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