शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

वाह



आज मंदिर गयी थी, टहलते टहलते दोस्तों के संग .. सामने मंदिर दिखा, हम सब बिना कुछ कहे ही, अन्दर चले गए. चप्पल उतर गयीं .. और कुछ देर बाद हम हाथ जोड़े भगवन के सामने खड़े थे.बड़ा ही अनोखा मंदिर था, भीड़ नहीं, ना ही ज्यादा साज श्रृंगार, शोर रत्ती भर का नहीं .. हवा में कुछ था तो वो संगीत - चिड़ियों के गाने का, कभी हवा तो कभी कोई नाज़ुक उँगलियों की छुअन से बजती घंटियाँ. इस माहौल को और रंगमयी बनातीं झील की लहरें. नाम की पूजा कर के हम सब बाहर आ गए. वहीँ कुछ बेन्चेस थीं सो पैर गिराए और अपनी अपनी चुप्पी में खो लिए. हम अपने आस पास की शान्ति से चकित भी थे और खुश भी. कोई कुछ नहीं बोल रहा था, ना ये चाह रहा था की दूसरा बोले.

इतने में एक लड़की मंदिर में आई, बाल खुले, गाउन में थी .. चेहरे पे हाव भाव ठीक थे. हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.वो अन्दर गयी, काफी देर तक अन्दर रही. और कुछ समय बाद, बाहर आई .. कुछ कदम चले, और बाकी दौड़ने लगी. हँसते हुए, आधे बाल मूंह पे झूलते .. वो दोड़ती हुई बाहार चली गयी. इतना सब देख कर मैं  अवाक थी और जाने क्यूँ मेरे मूंह से निकल पड़ा एक शब्द, जिसे सुनकर मेरे दोस्त भी अचंभित रह गए.
"वाह !"

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