शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

जग अभी तेरे लिए तैयार नहीं है !


एक छुपती दुबकती धूप से, एक नटखट रोशनी का टुकड़ा उस कमरे के अन्दर कदम रखता  है. कहाँ वहां वो लाश सी पड़ी है कई दिनों से, खुद से,खुद के जीवन से घिन खाते  हुए . . . आखिर क्या था इसका कसूर जो उठा ली गयी ये.और देह रस चूस के एक कोने में फेंक दिया गया उसे.रह रह के सोचती, क्या मैं इंसान हूँ .. जो आस पास कभी बसे थे, घूमा फिरा करते थे, सलाम आदर से  नवाज़ा करते  थे ..वो इंसान थे?


कितने समय बाद ये काला पर्दा हटा समाज का, तहज़ीब का. नारी उस काल से इस काल तक आज भी एक बेबस मूरत है, ना उसने अपने पंख कभी खोले ना दुनिया ने कभी उसे आकाश दिखाया, सारे इन्तेज़ामों  से क़तर दिया उसकी उड़ान को. और देखो आज कैसे जानवर कि भाँती,अपने धूमिल, नुचे हाथों को देख रही है.

यूंही हाथ से होकर  निगाह   कंधे, छाती ..पेट पे रूकती है.वहां एक हलचल है, एक उम्मीद है .. और शायद उस उम्मीद की खबर लेने ही ये धूप चुप चाप इस काली दुनिया में चली आई है.पेट पर हाथ फेरती हुई बस दुआ करती है - तू मत बनियो छोरी, कि ए जग अभी तेरे लिए तैयार नहीं है !

3 टिप्‍पणियां:

Surbhi ने कहा…

bahut bahut achcha likha hai....

Anupam Karn ने कहा…

किस आजादी की बात कर रहे है ?
कौन आज़ाद है यहाँ ? मुझे तो लगता है कोई भी आज़ाद नही | रोज सुबह उठकर वही दिनचर्या और शाम को निढाल लाश की तरह बिश्तर पे |
सूरज की किरणों में नहाने का मौक़ा अब किसे मिलता है ........ और समाज तो हुम आप से ही बनता आया है ! किरन वेदी के लिये भी वही समाज था वही अमृता के लिए व्ही आम नारी के लिए भी ... पर मुक्ति पाने लिए संघर्ष तो करना पड़ता हैं !

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA ने कहा…

अनुपम जी , आपकी कैद अलग तरह की है. ये कैद एक लम्हे को खटकती तो है पर हमेशा के लिए दिमाग में घर नहीं बना पाती !`

मैं उस कैद की बात कर रही हूँ , जो मैंने या आपने नहीं बनायी है , जो कई सालों से समय चक्र में लिपटी चली आ रही है . यदि उन हथकंडों या कहें परम्पराओं को नकारो तो लोगों की भोहें ऊँची हो जाती हैं(खासकर एक स्त्री के लिए ) .क्यूँ किरण बेदी या अमृता का नाम लेते हो, उनकी रसोई में झाँकों जो अभी भी पनियल आखों से अपनी किस्मत तल रही हैं .वो , जो उस बंधन को अपना भाग्य मान लेती है ..क्यूंकि समाज ने उन्हें कभी उठने ही नहीं दिया , हाँ कुछ थीं जिन्होंने छुआ आकाश . . . पर कई आज भी अँधेरे में हैं .